17/05/2024

हिन्दी माध्यम से आईएएस (IAS) बनने का रास्ता (Way to be an IAS with Hindi medium)

आईएएस बनने के लिए एक मात्र रास्ता है कि आपको सिविल की परीक्षा देनी होगी और उस में अच्छे रैंक लाने होंगें।  आपको  इसमें आवेदन करना होता है।  इसके बाद आपको प्रारम्भिक परीक्षा, मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार से गुजरना होता है इन्हे उत्तीर्ण करने के बाद अगर आप अच्छा रैंक ले आते हैं तब ही आप आईएएस का पद चुन सकते है। समाज में आईएएस (IAS) अपने आप में एक बेहद गरिमामय पद है। इस गरिमा को पाने के लिए जो संस्था इसकी परीक्षा का आयोजन करती है वो है संघ लोक सेवा आयोग। इसे इंग्लिश में  (UPSC – Union Public Service Commission) कहते हैं । इस आयोग के बनने से पहले इसे सिविल सर्विसेस के नाम से जाना जाता था।

सिविल सर्विसेस की गरिमा  

सिविल सर्विसेज निसन्देह रूप से अपने शुरुआत से लेकर आज तक भारत में सबसे ज्यादा सम्मानजनक नौकरी है । इस का आकर्षण दिन प्रति दिन बढ़ते ही जा रहा है। शुरुआत के दिनों में इसे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के पहुँच के बाहर की परीक्षा समझा जाता था पर अपनी मेहनत और लगन के कारण आज इस में सबसे ज्यादा भागीदारी मध्यम वर्गीय या निम्न मध्यम वर्गीय घरों के लोगों का है । कुछ मामलों को छोड़ दें तो आज तक सिविल सर्विसेस ने आज तक अपनी गरिमा बरकरार रखी है।

सिविल सर्विसेज की शुरुआत कैसे हुई ?

सबसे पहले इसकी परीक्षा इंग्लैंड में हुआ करती थी। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रवादियों ने जो राजनीतिक आन्दोलन चलाया उसकी एक प्रमुख मांग थी कि लोक सेवा आयोग में भर्ती की चयन प्रक्रिया भारत में हो। उनकी इस बात की लगातार बढ़ते आन्दोलनों को देखकर अंततः प्रथम लोक सेवा आयोग की स्थापना अक्तूबर 1926 को हुई।

भारत में स्वतंत्रता मिलने के बाद संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना कैसे हुई ?

आज़ादी के बाद संवैधानिक प्रावधानों के तहत 26 अक्तूबर 1950 को लोक आयोग की स्थापना हुई। इसे संवैधानिक दर्जा देने के साथ साथ स्वायत्ता भी प्रदान की गयी ताकि यह बिना किसी दबाव के योग्य अधिकारियों की भर्ती क़र सके। इस नए स्थापित लोक सेवा आयोग को संघ लोक सेवा आयोग का नाम दिया गया। इस आयोग के गठन के साथ ही स्वतंत्र भारत में हिन्दी माध्यम से आईएएस (IAS) बनने का रास्ता खुल गया।

सिविल सर्विसेज में हिन्दी की हालत

सिविल सर्विसेज में हिन्दी भाषी उम्मीदवारों की अच्छी भागीदारी थी पर समय के साथ साथ ये कम होता चल गया है। अधिकतर लोगों के बीच इसकी असल वजह को लेकर मतभेद है पर एक वजह पर अधिकतर लोग एक मत हैं वो वजह है भारत में हिन्दी भाषा को पाठ्य पुस्तकों के पाठ्यक्रम में धीरे धीरे हाशिये पर करते जाना । स्कूलों कॉलेजों में पहले विज्ञान, गणित जैसे विषय की भी पढ़ाई हिन्दी विषय से होती थी पर आज के पाठ्यक्रम में हिन्दी सिर्फ एक भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है बाकी सारे विषय की पढ़ाई इंग्लिश भाषा में होने लगी है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो हिन्दी भी संस्कृत की तरह विलुप्त होने के कगार पर चली जाएगी ।

हिन्दी भाषा से सफलता के आँकड़े क्या कहते हैं ?

2015 और 2016 की परीक्षा में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन (LBSNAA) की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, हिंदी मीडियम वालों की सफलता दर लगभग 4 से 5 प्रतिशत के बीच रही, लेकिन 2017 और 2018 की परीक्षा में ये आंकड़ा घटकर 2 से 3 प्रतिशत के बीच पहुंच गया।

2021 में 7 वर्ष के बाद हिंदी माध्यम का कोई छात्र यूपीएससी पास करने वाले टॉप 25 उम्मीदवारों में जगह बना पाया है। इससे पहले 2014 की सिविल सेवा की परीक्षा में निशांत कुमार जैन 13वें स्थान पर रहे थे।

यूपीएससी इस बात की पूरी जानकारी नहीं देती कि सफल उम्मीदवारों ने किस मीडियम में परीक्षा दी थी, इसलिए परीक्षा में चुने गए उम्मीदवारों ने किस मीडियम में प्रश्नों का दिया था ये एकदम सटीकता से पता करना मुश्किल है।

हिन्दी माध्यम के परीक्षार्थियों के आँकड़े

2015 के बाद से यूपीएससी की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर हिंदी मीडियम से मेन्स लिखने वालों का आंकड़ा लगातार गिर रहा है, वह 2019 और 2020 में भी गिरता ही गया है।

साल 2015 में हिंदी मीडियम से मेन्स लिखने वालों की संख्या 2,439 थी जो 2019 में घटकर 571 और 2020 में सिर्फ 486 रह गई थी ।

कम सेलेक्शन होने का कारण

हिंदी मीडियम से यूपीएससी की तैयारी करने वालों की राय एक जैसी नहीं है।  किसी के अनुसार यह यूपीएससी की नीति और परीक्षा पैटर्न के चलते हुआ है, तो कोई इसे छात्रों और सही मार्गदर्शक नहीं मिलने को इसका कारण बताते हैं।  कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसके लिए सरकार की नाकामी और देश के सिस्टम की विफलता को ज़िम्मेदार ठहराते हैं ।

क्या अंग्रेज़ी के बढ़ता दायरा भी एक मुख्य कारण है ?

एक बड़ा वर्ग है जो हिंदी मीडियम के ख़राब प्रदर्शन की वज़ह अंग्रेज़ी के बढ़ते दायरे को मानते हैं। उनका कहना है कि हिंदी में परीक्षा देने वालों के ख़राब प्रदर्शन देश की शिक्षा व्यवस्था, अंग्रेज़ी को लेकर सरकारों की नीति, और देवनागरी लिपि को लिखने में अंग्रेज़ी की तुलना में ज़्यादा वक़्त लगने आदि को भी माना जा सकता है। हिंदी भारत में सबसे लोकप्रिय भाषाओं में से एक है और अधिकांश जनसंख्या इसे समझती है। भारत सरकार अंग्रेजी के साथ-साथ विभिन्न विभागों के बीच संचार के लिये आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में हिंदी का उपयोग करती है।

क्या हिन्दी मातृभाषा वालों को हिन्दी से ही सिविल सर्विसेस करनी ही चाहिए ?

हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा से लगाव होता है पर जब बात  सिविल सर्विसेज जैसी शीर्ष प्रतियोगिता परीक्षा की हो तो व्यक्तिगत लगाव को दरकिनार करते हुए प्रतियोगिता में सफलता की तरफ ध्यान देना चाहिए। अगर हिन्दी भाषी व्यक्ति सिविल सर्विसेज जैसे प्रतियोगिता में सफल होते हैं तो एक सक्षम अधिकारी के रूप में हिन्दी की ज्यादा सेवा कर सकते हैं । वो हिन्दी की भविष्य को लेकर बेहतर योजना बना सकते हैं। बात ये भी नहीं है की हिन्दी से तैयारी संभव ही नहीं है। एक समय संस्कृत से परीक्षा देने वाले लोगों की सफलता की प्रतिशत सबसे ज्यादा थी। आज हिन्दी से परीक्षा देने वालों को हो सकता है कि इस तरह का लाभ मिले ।

सलाह

आप हिन्दी माध्यम से भी आईएएस (IAS) बनने का रास्ता चुन सकते हैं पर एक बार अच्छे से अपनी योग्यता, उपलब्ध संसाधन और अपनी क्षमता का आँकलन अवश्य कर लें। आप से बेहतर आपको कोई नहीं जानता है। लोगों के कहने पर नहीं अपनी योग्यता के अनुसार अपने भविष्य का चुनाव करें।  हिन्दी भाषा से तैयारी करवा रहे एक संस्थान का जानकारी के लिए आप इस वेबसाईट ( https://www.drishtiias.com/hindi/ )  पर जाकर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी किसी भी निर्णय के लिए अपने बुद्धि और विवेक का प्रयोग करें।

नोट

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